रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Sunday 22 September 2013

नारी जहाँ सताई जाए



बहुत विश्व में अब भी कोने
नारी जहाँ सताई जाए।
जिसने अक्षर कभी पढ़े ना
कविता उसको कौन सुनाए।

मिलते नहीं पेट भर दाने
पिसती लेकिन दानों जैसी।
चीखें रुदन दबा अंतर में।
पिटती वो हैवानों जैसी।

स्वजनों को सींचे अमृत से।
स्वयं हलाहल प्याला पाए।

व्यथा कथा यह उस नारी की
जिस पर नज़र न कोई जाती।
समानता  के  दावे  झूठे
नर होते  नारी  पर  हावी।

कभी प्यार के बोल सुने ना
गीत छंद के कैसे गाए।

जिन कदमों ने छुआ गगन को
कभी न उस कोने तक पहुँचे।
जहाँ बनी अभिषाप अशिक्षा
नरपशु लक्ष्मण रेखा खींचे।

कहाँ न्याय के मंदिर उसके?
कौन उसे वो राह दिखाए।

दिवस न कोई उसका आता
अंकित होती केवल गाथा।
देता  है  इतिहास  गवाही
लिखने वाला ही यश पाता।

रचना तेरी देख रचयिता
तिल तिल अपना रूप गँवाए।

-कल्पना रामानी

No comments:

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers