सजकर उतरी चाँदनी।
चलीं हवाएँ साथ झूमने
बढ़ा हिमगिरि कदम चूमने।
जड़ चेतन के ह्रदय उतरती
तन मन को आल्हादित करती।
चंद्र लोक से चलकर आई
पहन किरण की पैंजनी।
नवल श्वेत वस्त्रों में आई।
शरद पूर्णिमा दूध नहाई।
आँज नयन में काजल थोड़ा
आसमान को तन पर ओढ़ा।
सजा सितारों से आँचल, ज्यों
जगमग चुनरी बाँधनी।
चंचल रूप सभी को भाया।
नर नारी का मन अकुलाया।
प्रिय वियोगिनी छत पर धाई।
शायद सखी संदेसा लाई।
तप्त ह्रदय को शीतल करने
बरसी रसित सुहासिनी।
- कल्पना रामानी
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