रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Friday 2 January 2015

मेरे बारे में /कल्पना रामानी


आत्म कथ्य-(प्रकाशित किताब से)

  जिस तरह प्रकृति परिवर्तन अटल है, उसी तरह जीव-जीवन में उतार चढ़ाव भी निश्चित है। सुख-दुख, धूप-छाँव, लाभ-हानि, उत्थान-पतन आदि। हर इंसान को न्यूनाधिक इन समस्याओं से जूझना ही पड़ता है। लेकिन हम यदि यथार्थ को स्वीकार न करते हुए अपने हौसले ही खो बैठें तो जीना ही दूभर हो जाए। मानव जन्म किस्मत से ही मिलता है। इसे हर रूप में स्वीकार करके हमें कुदरत का आभार मानना चाहिए।

मेरा जीवन भी अनेक उतार चढ़ावों के बीच गुज़रा है। हाई स्कूल तक औपचारिक शिक्षा के बाद पारिवारिक जवाबदारियों का निर्वाह करते हुए उम्र के ४५ वर्ष सामान्य रूप से कट गए। फिर अचानक जीवन में अनेक विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। लंबे समय तक शारीरिक अस्वस्थता, पति का असमय साथ छूटना आदि समस्याओं से जूझते हुए मृत्यु से साक्षात्कार करने के बाद जब पुनर्जन्म हुआ, तब जीवन का अंतिम अध्याय शुरू हो चुका था। शहर बदलते रहने के कारण न मित्र बन पाए न ही बाहरी दुनिया से संपर्क।  शारीरिक कमज़ोरी के कारण कहीं आना जाना भी छूट गया। समय बिताने के लिए कोई राह शेष न रही। सुनने की क्षमता भी कमजोर हो चुकी थी अतः टी वी से भी दूरी बन गई। 

ऐसे समय में अंतर का रचनाकार जो वक्त के साथ सो चुका था, फिर से जाग उठा। हिन्दी साहित्य से लगाव बचपन से ही था और अच्छा साहित्य पढ़ते रहने का क्रम भी कभी टूटा नहीं था।  शयन कक्ष में सामने रखा हुआ बेटे का टेबल कंप्यूटर देख-देख कर सोचा क्यों न फिर से सीखने की शुरुवात की जाए।

बेटे से सीखने के लिए कहा, उसने मेरे विचारों का स्वागत करते हुए कंप्यूटर का प्रयोग करना सिखाया। फिर धीरे धीरे अंतर्जाल का प्रयोग करना सीखा। लगन एकाग्रता, सब्र और मेहनत से लिखने की शुरुवात की।

इन दिनों कुछ गीत लिख चुकी थी और मन में इन्हें प्रकाशित करवाने की ललक थी। मगर यह कैसे किया जाता है, यह मैं नहीं जानती थी। खानदान में इस तरह का शौक किसी को  नहीं था, मुझे अकेले ही बढ़ना था।  यह सब अंतर्जाल सीखने पर संभव है, यह मैं जान चुकी थी।
बेटे का प्रोत्साहन पाकर  पहले टेबल कंप्यूटर पर दिन रात मेहनत करके टाइप करना सीखा। आखिर  उसने मुझे ६० वें जन्म दिन पर लैपटाप उपहार में दिया। खोलना बंद करना और कुछ ज़रूरी बातें सिखाईं। गूगल और फेसबुक पर मेरा खाता बनाकर खानदान के सभी बच्चों को मेरा मित्र बना दिया। मैं उसके निर्देशानुसार हिन्दी के मनपसंद पृष्ठों की तलाश में जुट गई। जब विश्व के कोने कोने से कहानियाँ” शीर्षक पर नज़र पड़ी तो मन उछल पड़ा जैसे कोई खज़ाना हाथ आ गया हो। उसे खोला तो देखा, उसके साथ एक वेब पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक पूर्णिमा वर्मन जी) जुड़ी हुई थी। मेरा मन उस साहित्य सागर में समा जाने को व्याकुल हो उठा। 

  आधी रात तक पढ़ती रही। रचना प्रसंग, लेखकों के परिचय, रचनाएँ भेजने के नियम, हिन्दी का सुशा फॉन्ट सब कुछ तो था जिसकी मुझे तलाश थी। अभिव्यक्ति के सभी लेखक उच्च शिक्षित थे।उनके परिचय के साथ पुरस्कार, प्रकाशित संग्रह आदि का विवरण दिया हुआ था।  मैं शुरुवात करने की उम्र और शिक्षा के मामले में एक अपवाद ही थी लेकिन फिर पूर्णिमा जी के रचना प्रसंग में लिखे हुए शब्द मन में गूँजने लगते कि ज़रूरी नहीं कि आपने हिन्दी में एम ए किया हो। अगर आपको हिन्दी में लिखने का शौक है तो अपनी रचनाएँ भेज सकते हैं। हम नई हवा के अंतर्गत नए रचनाकारों को प्रकाशित करते हैं। मुझे लगा जैसे पूर्णिमा जी मुझे नींद से जगा रही हों। 

   बेटे से आग्रह करके सुशा फॉन्ट डेस्क टॉप पर डाउन लोड करवाया और बड़ी मेहनत से सीखकर गीत टाइप करके अभिव्यक्ति अनुभूति के पते पर ई मेल करवाए। नियमानुसार एक महीना इंतज़ार करना था । मन में संशय बना ही रहता कि मेरे गीत प्रकाशित नहीं हो सकते। दिन गिनती रही लेकिन एक माह बीत जाने पर भी जब जवाब नहीं आया तो निराश हो गई। अचानक  ठीक इकतीसवें दिन चमत्कारिक रूप से पूर्णिमा जी की मित्रता की अर्ज़ी आई। बेटे की सख्त हिदायत थी कि बिना उसे दिखाए किसी अर्ज़ी को कन्फर्म नहीं करना है। वो घर पर ही था। दौड़कर उसके पास कंप्यूटर ले गई और दिखाया। उसने देखते ही कन्फर्म कर दिया। फिर उसी समय पूर्णिमा जी ने अभिव्यक्ति समूह से जोड़ा और इसके तत्काल बाद हिन्दी दिवस विशेषांक केलिए रचनात्मक सहयोग के लिए आमंत्रित किया।

   घटनाएँ इतनी तेज़ी से घटित हो रही थीं कि  मैं समझ नहीं पा रही थी कि जो कभी नहीं लिखा वो बिना किसी सहयोग या जानकारी के कैसे लिखूँ। फिर भी हिस्सा लिया और समूह पर ही सदस्यों द्वारा प्रकाशित रचनाएँ पढ़-पढ़ कर एक गीत हिन्दी की मशाल शीर्षक से तैयार किया। जो विशेषांक में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ। यह मेरे लिए अनमोल क्षण था और रचनात्मकता के क्षेत्र में मेरा प्रथम पुरस्कार। अब मुझमें आत्म विश्वास आ चुका था। 

 इसके बाद सीखने का दौर शुरू हो गया। समूह के सभी सदस्य बहुत अच्छे थे। जल्दी ही सब मित्र बन गए।  समूह पर तरह तरह की विधाओं की जानकारी विद्वान सदस्यों द्वारा मिलती रहती थी। नवगीत की पाठशाला से भी जुड़ना हो गया। इससे पहले नवगीत का कभी नाम भी नहीं सुना था। लेकिन सीखने की प्रबल इच्छा के कारण  प्रतिदिन पाठशाला पर जाकर घंटों गीत पढ़कर समझने की कोशिश करती रहती। आदरणीय 'जगदीश व्योम' जी अक्सर हमारे समूह पर आकार मार्ग दर्शन करते रहते थे, जल्दी ही नवगीत भी लिखने लगी। और पाठशाला की हर कार्यशाला में मेरे नवगीत प्रकाशित होने लगे। इतना करने के बाद पूर्णिमा जी ने मेरी लगन और रुचि को देखते हुए मुझे अपनी पत्रिका के संपादक-मंडल में शामिल किया और मुझे ग़ज़ल का व्याकरण सीखने को प्रोत्साहित किया।

 मुझे उर्दू का ज्ञान बिलकुल नहीं था और शायरी में कोई रुचि नहीं थी लेकिन पूर्णिमा जी का आग्रह मेरे लिए गुरु के आदेश जैसा ही था, अतः सीखने का मन बनाया।  छंद विधा का काफी ज्ञान समूह के विद्वानों से हो चुका था। आदरणीय 'त्रिलोकसिंह ठकुरेला' जी के प्रोत्साहन और मार्ग दर्शन में कुण्डलिया छंद और दोहे लिखना सीख चुकी थी, अतः गज़ल सीखने में कोई कठिनाई नहीं हुई। 
आदरणीय 'शरद तैलंग' जी के मार्गदर्शन में शुरुवात हुई। उन्होंने पूरे स्नेह और सब्र के साथ मेरी सीखने में हर संभव सहायता की फिर अंतर्जाल पर एक अन्य साइट ”ओपन बुक्स ऑनलाइन” से जुड़ गई। यहाँ आकर छंद विधा के बड़े विद्वानों से परिचय और मित्रता हुई। छंद विधा की बारीकियों को सीखने और समझने का अवसर मिला। 

  अब लिखना दिनचर्या का अंग बन चुका है इससे तन मन भी अधिक स्वस्थ रहने लगा है।  मुझे लगता था कि शायद मेरा पुनर्जन्म इसीलिए हुआ है कि जीवन का जो अध्याय अधूरा रह गया था उसे पूरा कर सकूँ। अपने रचनाकाल के दो साल की  अवधि में मैं दोहे, कुण्डलिया, गीत-नवगीत और गजलें काफी लिख चुकी थी अतः पूर्णिमा जी की इच्छा थी कि मेरी रचनाओं का संग्रह प्रकाशित होना चाहिए। मेरी हर इच्छा आसानी से पूरी हो रही थी और अपने आप रास्ते खुलते जा रहे थे, अचानक ही मेरे मित्र वीनस केसरी जी ने संग्रह के बारे में मुझसे बातचीत की और उनके सहयोग से प्रकाशित मेरा यह संग्रह आपके हाथों में है।

   मैं उन सब सहयोगियों और समूह के मित्रों की हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मेरे हौसलों को पंख दिये और मैं साहित्याकाश में उड़ान के लिए चल पड़ी।   
 मेरी अधिकतर रचनाएँ प्रकृति प्रेम, देश प्रेम और मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी हुई हैं।  मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि मेरे गीत-नवगीत आपको अवश्य पसंद आएँगे।
अंत में प्रिय पाठकों से कहना चाहूँगी कि हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आगे आएँ और अपने मित्रों को अन्य उपहारों के साथ हिन्दी की कोई पुस्तक भी अवश्य भेंट दें ताकि हिन्दी प्रेमी माँ भारती के पुत्र-पुत्रियों का श्रम सार्थक हो सके। 

परिचय 

 मेरा जन्म -६ जून १९५१ को उज्जैन, मध्यप्रदेश  में हुआ. हाई स्कूल तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने  निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य-कला को देश विदेश में सराहना और पहचान मिली।
मेरी गीत, गजल  के अलावा अभी छंद विधाओं में विशेष रुचि है तथा  मेरी रचनाएँ मुद्रित पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं।
वर्तमान में १४ वर्षों से वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका/अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत हूँ। 
प्रकाशित कृतियाँ-
नवगीत संग्रह-१)*हौसलों के पंख* 2)*खेतों ने ख़त लिखा* ३) *
गज़ल संग्रह -*मैं ग़ज़ल कहती रहूँगी*।
पुरस्कार/सम्मान-मेरे प्रथम नवगीत संग्रह 'हौसलों के पंख' पर पूर्णिमा वर्मन द्वारा 'अभिव्यक्ति विश्वम' का नवांकुर पुरस्कार

-कल्पना रामानी
नवी मुंबई खारघर

4 comments:

ashu said...

मैंने जब पहली रचना पढ़ी, तभी मुझे दो चीज ध्यान में आया. पहली यह की आप ने पूरा कला की औपचारिक शिक्षा ली है और दूसरी आपकी कविता काफी गहरे सोच से उपजी है. इतनी सोच उभरने के लिए आदमी को ३०-४० वय में प्राप्त होती है.

आप खारघर में रहती हैं और मैं सीवूद नेरुल , कैसे मैं आपको जान नहीं पाया अचंभित हूँ.
सचाई यह है की बिना कठिनाईयों का सामना कर कोई अच्छा कलाकार नहीं बना. आपकी सराहना के लिए मेरे पास शब्द नहीं

Unknown said...

good morning

Meena Ramani said...
This comment has been removed by the author.
Meena Ramani said...

aapke baare me padker bahut achchha laga... bahut kuchh sikhne ko mila ki man me lagan ho to kahi se bhi shuru kiya ja sakta he.. no matter how old you are... and what is your formal education.

Thank you so much

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आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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